MA 2nd Semester Pass Course Political Science ( Indian Constitution ) Question paper Free download pdf in Hindi
दल के बाहर है अथवा उसका उसके साथ कम से कम एक विशेष सम्बन्ध है, इसलिए वह उस नैतिकता से ऊपर उठ जाता है। जिसे दल के अन्दर लागू किया जाना चाहिए। राज्य के सृष्टिकर्त्ता के रूप में शासक विधि से बाहर ही नहीं अपितु यदि विधि नैतिकता के नियम बनाये तो वह नैतिकता के भी बाहर होगा। उसके कार्यों का मूल्यांकन करने का और कोई आधार नहीं है सिवाय इसके कि अपने राज्य की शक्ति को बढ़ाने और चिरस्थायी बनाने में उनकी राजनीतिक युक्तियाँ कहाँ तक सफल हुई हैं।”
- राजनीति का धर्म और नैतिकता से पृथक्करण के कारण मेकियावेली के द्वारा राजनीति का धर्म और नैतिकता से जो पृथक्करण किया गया, उसके निम्न कारण दिये जा सकते हैं
- मेकियावेली यूनानी दार्शनिकों की भाँति राज्य को सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च संगठन मानता है र उसका विचार है कि राज्य के हित व्यक्तिगत हितों से उच्च और महत्त्वपूर्ण होते हैं।
- इसलिए उसने खा है, “जब राज्य की सुरक्षा संकट में हो तो उस पर नैतिकता के वे नियम लागू नहीं होने चाहिये जो नागरिकों के व्यवहार को विनियमित करते हैं।”
- मेकियावेली का उस समय पोप के पापमय आचरण व ईसाइयत में सिखाये जाने वाले सिद्धांतों को देखकर यह विश्वास बन गया था
- कि धार्मिक सत्ता मनुष्यों को अन्धविश्वासी व अकर्मण्य बनाती है जिसके कारण वे परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ हो जाते हैं।
वह बिल्कुल नहीं चाहता था कि मनुष्य को दुर्बल बनाने वाली धार्मिक सत्ता का राजनीति में लेशमात्र भी अस्तित्व हो
- होने के कारण उसने स्वयं यह देखा था कि शासकगण आन्तरिक प्रशासन और वैदेशिक सम्बन्धों के संचालन में सदैव ही नैतिक-अनैतिक सभी साधनों को अपनाते रहे हैं।
- अतः उसने राजनीति में नैतिकता का उपदेश देना व्यर्थ समझा।
- चौथा कारण, मेकियावेली द्वारा शक्ति को असाधारण महत्त्व देना था।
- अतः शक्ति प्राप्त करने के लिए उसने किसी भी उपाय के प्रयोग को उचित बताया। उसके इस दृष्टिकोण के कारण धार्मिक व नैतिक प्रभाव से पूर्णतया मुक्त राजनीति का जन्म हुआ।
- मेकियावेली का राजनीति का धर्म और नैतिकता से पृथक्करण का आलोचनात्मक मूल्यांकन-मेकियावेली का नीति-विज्ञान तथा राजनीति का पृथक्करण सिद्धांत भी आलोचना से उन्मुक्त नहीं है।
- उसका आलोचनात्मक विश्लेषण किया जाय तो उसकी निम्न कमियाँ नजर आएँगीवह राजनीतिज्ञों की काली करतूतों को
Azamgarh University Result 2022 Annual/Semester Exam | Links |
MA 2nd Semester | Click Here |
jncu University MA MSc MCom Result 1st Year | Click Here |
jncu BED Part 1, 2,3 Result | Click Here |
ballia Even Semester Result | Click Here |
Diploma/Certificate Exam Result New | Click Here |
पुरस्कृत करता MA 2nd year political science syllabus
इसकी कोई जमानत है कि नहीं शासक तथा जनता के हित एक ही होंगे। राज्य के हितों के निर्णय के सम्बन्ध में शासक पर कोई नियंत्रण नहीं रखा जा सकता। उसकी व्यक्तिगत सनका और पूर्वधारणाओं को भी राज्य की नीतियों के नाम पर बढ़ावा दिया जा सकता है। (iii) मेकियावेली का यह सिद्धांत कि ‘लक्ष्य साधन का समर्थन करेगा” “महात्मा गांधी के इस सिद्धांत के ठीक विपरीत जाता है कि साधन लक्ष्य का समर्थन करता है। उन्होंने (महात्मा गांधी ने ) इसको प्रमाणित किया है कि उनका सिद्धांत व्यावहारिक राजनीति में प्रयुक्त किया जा सकता है।
जैसे प्रो० ऐल्लेन ने कहा है, “उनके मानव-चरित्र के मूल्यांकन में एक गम्भीर त्रुटि है ऐसा क्यों न कहा जाय कि जिस विषय के ज्ञान की उन्हें सबसे अधिक आवश्यकता थी उसी की समझ की उनमें कमी थी।”
आलोचनात्मक मूल्यांकन-आलोचकों के अनुसार मेकियावेली ने अपने राजनीति दर्शन में धर्म और नीति की घोर उपेक्षा की है। इटली की तत्कालीन परिस्थितियों में उसकी दृष्टि इतनी सीमित
और मर्यादित हो चुकी है कि वह मानव समाज में इनका सही महत्त्व आँकने में सर्वथा असमर्थ था। इस बाइन ने लिखा है.—.” यह निश्चित है कि 16वीं सदी के प्रारम्भ में मेकियावेली ने यूरोपीय विचारधारा को बिल्कुल गलत रूप में चित्रित किया। उसकी दो पुस्तकें लिखी जाने के 10 वर्ष के भीतर ही प्रोटेस्टेण्ट धार्मिक सुधार आंदोलन के कारण राजनीति और राजनीतिक चिन्तन मध्ययुग की अपेक्षा धर्म से अधिक सम्बद्ध हो गया।” डॉ० पूरे के शब्दों में, “मेकियावेली स्पष्टदर्शी थे पर दूरदर्शी नहीं थे। उन्होंने चालाकी को राजनीतिज्ञ की कला मान लेने की भूल की है।”
प्रश्न 7 (ii) मेकियावेली के राज्य सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए। अथवा “मेकियावेली की ‘प्रिंस’ राज्य के सिद्धान्त पर नहीं बल्कि शासन की कला पर एक पुस्तक है।”
विस्तार कीजिए तथा परीक्षा कीजिए। “कोई भी नरेश अपनी स्वयं की फौज रखे बिना सुरक्षित नहीं है।” टिप्पणी कीजिए। “साहसिक कार्य करने और सुन्दर उदाहरण रखने से बढ़कर नरेश को कोई भी चीज अधिक सम्मानपूर्ण नहीं बना सकती।” (दि प्रिंस) टीका कीजिए। अथवा अथवा
सच्चे अर्थ में दार्शनिक नहीं बल्कि व्यावहारिक राजनीतिज्ञ मेकियावेली के राजनीतिक विचारों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि वे सच्चे अर्थ में दार्शनिक नहीं थे। वास्तव में वे एक सक्रिय तथा व्यावहारिक राजनीतिज्ञ थे जो परिस्थितिवश राजनीति से निवृत्त होने को मजबूर किये गये थे। अतएव उन्हें जो अनिवार्य अवकाश मिला था उसको उन्होंने अपने अतीत के राजनीतिक कार्यकलापों के संस्मरणों को लेखबद्ध किया। यदि हम उनके लेखों में दार्शनिक तर्कणा की सूक्ष्मतायें ढूँढ़ने लगें वह व्यर्थ का प्रयास होगा। उन्होंने कभी भी अपने को एक राजनीतिक दार्शनिक नहीं समझा और न कभी वे दार्शनिक बनना ही चाहते थे। वे एक सांसारिक प्राणी थे और हमेशा वही होकर रहना चाहते थे। उनके लेखों में जो कुछ राजनीतिक चिन्तन मिलता है ma political science syllabus in Hindi Pdf
Rohilkhand University BA Time Table 2022 Download in PDF || Step by Step Full Process
MA 2nd semester Political Science Result 2022
अगर आपकी पोस्ट ग्रेजुएट कर रहे हैं तो आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण सूचना है फर्स्ट ईयर के सेकंड सेमेस्टर के समस्त विद्यार्थियों को राजनीति विज्ञान के ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न के बारे में बताया गया है साथ ही में यह भी बताया गया कि उनकी परीक्षा का Result कब तक घोषित किया जाएगा ।
वह केवल संयोग की बात है। संयोग ऐसा हुआ कि उनका जन्म इटली में हुआ था जो योरूप में पुनर्जागरण आंदोलन की जन्म भूमि थी और उनकी कृतियों का विशेषकर ‘प्रिंस’ का उनके जीवन काल, में तथा बाद में भी सारी जनता में पठन-पाठन हुआ था। सेबाइन ने ठीक ही कहा है कि “मेकियावेली के राजनीतिक लेख राजनीति सिद्धांत से कम और उस कूटनीतिक साहित्य से अधिक सम्बन्ध रखते हैं जिसका सृजन उनके समकालीन इटालीय लेखकों ने भारी मात्रा में किया था।” मेकियावेली की मुख्य विषयवस्तु राज्यों के उत्थान और पराभव के कारण ढूँढ़ना तथा उन साधनों का पता लगाना था जिनसे राजनीतिज्ञ इनको चिरस्थायी बना सकते हैं। इस विषय वस्तु का प्रारम्भिक भाग जरा दार्शनिक बन पड़ने के कारण उनकी रुचि के अनुसार न होने के कारण उसकी विस्तृत चर्चा नहीं की गयी किन्तु परवर्ती भाग अर्थात् “राज्यों का राजनेता कैसे चिरस्थायी बना सकता है।” प्रिंस में मुख्य रूप से मेकियावेली के काल्पनिक राजा के लिए कुछ उपदेश हैं। “प्रिंस मुख्य रूप से शासक को अपने आपको सत्तारूढ़ रखने के तरीकों का प्रतिपादन करने वाली एक पुस्तिका है।” मेकियावेली को कभी निरंकुश शासकों का निजी शिक्षक भी कहा गया है।
- मेकियावेली अपनी कृति का आरम्भ दो कल्पनाओं के मानव प्रकृति बुरी, दुष्ट अथवा स्वार्थपूर्ण है।
- वस्तुतः शासक अथवा विधि-निर्माता अपनी इच्छा के अनुकूल अपने लाभ के लिए वातावरण परिवर्तित कर सकता है।
- सेबाइन के मतानुसार, “मेकियावेली के विचार को अच्छी तरह समझने के लिए उपर्युक्त इन दो कल्पनाओं को प्रारम्भिक बिन्दु माना जा सकता है।